अद्भुत है बांके बिहारी मंदिर की कहानी 17 may

बांके बिहारी मंदिर
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अद्भुत है बांके बिहारी मंदिर की कहानी 17 may

स्वामी हरिदास के वंशजों ने मिलकर श्री बांके बिहारी मंदिर का निर्माण करवाया था।

वृंदावन में बांके बिहारी जी का बड़ा मंदिर है, जहां देश भर से भक्त उनकी एक झलक पाने आते हैं। किंवदंती कहती है कि बांके बिहारी मार्गशीर्ष माह की पंचम तिथि को यहां आए थे। यह मंदिर पुराने नगर में है। स्वामी हरिदास के वंशजों ने मिलकर श्री बांके बिहारी मंदिर बनाया था। मंदिर में बांके बिहारी की काली प्रतिमा है। इस प्रतिमा में श्रीकृष्ण और राधा दोनों की छवि मिली हुई है। इसके बाद, स्वामी हरिदास ने भगवान श्रीकृष्ण को अपना आराध्य मान लिया।

उनका संगीत कन्हैया को ही समर्पित था। वह अक्सर वृंदावन में श्रीकृष्ण की रास लीला स्थली पर बैठकर संगीत से कन्हैया की पूजा करते थे। माना जाता है कि श्रीकृष्ण ने हर बार स्वामी हरिदास को दर्शन दिए। एक दिन स्वामी हरिदास के एक शिष्य ने कहा कि बाकी लोग भी राधे कृष्ण को देखना चाहते हैं। स्वामी हरिदास ने उनकी भावनाओं को ध्यान में रखते हुए भजन गाने लगे। जब श्रीकृष्ण और राधा ने उनके सामने प्रकट हुए

बांके बिहारी मंदिर
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तो उन्होंने भक्तों की इच्छा बताई। तब राधा-कृष्ण ने उसी तरह उनके पास रहने का अनुरोध किया। हरिदास ने इस पर कहा कि मैं संत हूँ, तुम्हें कैसे भी रख लूंगा, लेकिन राधा रानी के लिए हर दिन नए कपड़े और आभूषण कहां से लाऊंगा? भक्त की बात सुनकर श्री कृष्ण मुस्कुराए, फिर राधा-कृष्ण की जोड़ी विग्रह रूप में प्रकट हुई। स्वामी हरिदास ने इस कृष्ण-राधा रूप को बांके बिहारी कहा। ध्रुपद के जनक स्वामी हरिदास का जन्म भाद्रपक्ष शुक्ल पक्ष की अष्टमी को विक्रम संवत 1535 में हुआ था।

पिता आशुधीर ने माता गंगा देवी के साथ कई तीर्थयात्राएं कीं और अपने उपास्य राधा माधव की प्रेरणा से अलीगढ़ के कोल में हरिदासपुर गांव में बस गए। संगीत सम्राट तानसेन और बैजू बावरा स्वामी हरिदास के शिष्य थे। तानसेन की प्रेरणा से संवत 1627 में अकबर बादशाह भी वृंदावन आए थे। तानसेन ने स्वामीजी को उन्हें सौंप दिया, लेकिन वे जानते थे कि स्वामीजी अपने मन से गाते हैं, किसी को सुनाने के लिए नहीं। इसलिए, एक दिन तानसेन ने एक राग गाया।

और जानबूझकर राग के सुर को गलत बनाया। स्वामी हरिदास ने गलत सुर सुनकर क्रोधित होकर सही सुर गाने लगे। उन्हें सुनते ही आकाश से झमाझम बरसात हुई, और सम्राट अकबर भी उनके अनुयायी बन गए। बिहारी जी के भारत भर में कई मंदिर हैं, लेकिन इस एक मंदिर की एक विशेषता है जो इसे दूसरों से अलग बनाती है।

बांके बिहारी मंदिर
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अन्य मंदिरों की तरह, यहां हर दिन मंगला आरती नहीं होती, जैसा कि मंदिर के सेवायत शैलेंद्र गोस्वामी बताते हैं। यहां निधिवन में रास लीला के बाद हर रात कृष्ण और राधा विश्राम करते हैं, और सुबह-सुबह आरती करने से उनकी निद्रा भंग होती है। जन्माष्टमी के दिन ही बांके बिहारी जी की मंगला आरती होती है। इसी तरह श्री बांके बिहारी जी को केवल शरद पूर्णिमा के दिन ही बंशी पहना जाता है।

ठाकुर जी केवल श्रावण तीज पर झूले पर बैठते हैं और अक्षय तृतीया पर उनके चरण दर्शन होते हैं। आजकल बहुत से लोग ठाकुर जी को देखने के लिए आते हैं। मंदिर में भगवान कृष्ण की पूजा के दौरान उनका विधिवत शृंगार किया जाता है। उन्हें भोग में गुलाब जल, चंदन, मिश्री, केसर और माखन चढ़ाया जाता है।

वृंदावन का सबसे बड़ा मंदिर है।

मान्यता है कि बांके बिहारी की छवि को बार-बार देखने से भक्त श्रीकृष्ण की भक्ति में वशीभूत हो जाते हैं और उनके साथ चलते हैं। इसके लिए मंदिर में बांके बिहारी की मूर्ति के आगे एक पर्दा लगा है जो हर दो मिनट हिलता है। इससे कोई भी बांके बिहारी को एक टक नहीं देख सकता। माना जाता है कि उनकी मूर्ति इतनी आकर्षक है कि लोग उन्हें देखते ही उनकी ओर खींचे जाते हैं। साथ ही अपने आप उनकी आंखों से आंसू बहने लगते हैं।

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