इतिहास अक्सर महात्मा गांधी को एक आदर्श पति और कस्तूरबा गाँधी को एक आज्ञाकारी पत्नी के रूप में प्रस्तुत करता है। लेकिन असलियत इससे अलग ही थी। 11 april

कस्तूरबा गाँधी
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इतिहास अक्सर महात्मा गांधी को एक आदर्श पति और कस्तूरबा गाँधी को एक आज्ञाकारी पत्नी के रूप में प्रस्तुत करता है। लेकिन असलियत इससे अलग ही थी। 11 April

महात्मा गांधी का जीवन बहुत कठोर नियमों और सिद्धांतों पर आधारित था — शाकाहार, ब्रह्मचर्य, सादगी और आत्मसंयम। उन्होंने अपनी पत्नी और परिवार को
भी यही सब स्वीकार करने के लिए कहा।

लेकिन कस्तूरबा गाँधी हमेशा इन नियमों से सहमत नहीं थीं।

कस्तूरबा गाँधी का जन्म 11 अप्रैल 1869 को पोरबंदर, गुजरात में हुआ था। यानी की आज ही के दिन कस्तूरबा गाँधी का जन्मदिवस है। उनका परिवार पारंपरिक व्यापारी था। 13 साल की उम्र में उनकी शादी मोहनदास करमचंद गांधी से कर दी गई — जो आगे चलकर महात्मा गांधी बने। शुरुआती वर्षों में कस्तूरबा गाँधी को पढ़ाई-लिखाई का ज़्यादा अवसर नहीं मिला, लेकिन उन्होंने आत्मबल और दृढ़ इच्छाशक्ति से धीरे-धीरे खुद को सशक्त बनाया।

कस्तूरबा गाँधी
कस्तूरबा गाँधी

जब महात्मा गांधी 1893 में दक्षिण अफ्रीका गए, तो कस्तूरबा भी उनके साथ गईं। वहाँ से उनका असली राजनीतिक और सामाजिक जीवन शुरू हुआ।

शादी के बाद जब महात्मा गांधी ने कस्तूरबा गाँधी को मांसाहार और परंपरागत रीति-रिवाज छोड़ने के लिए मजबूर किया। उन्होंने उनका विरोध किया और कहा कि वे अपने विश्वास नहीं छोड़ेंगी। इसी तरह, जब महात्मा गांधी ने ब्रह्मचर्य का पालन करना शुरू किया, तब भी कस्तूरबा गाँधी से बिना बातचीत किए उन्होंने यह निर्णय लिया — जिसे उन्होंने निजी रूप से अनुचित माना। कई ऐतिहासिक स्रोतों में बताया गया है कि कस्तूरबा गाँधी ने महात्मा गांधी के साथ वैवाहिक संबंधों को लेकर समय-समय पर नाराज़गी भी जताई थी। यह भी एक कारण रहा कि कस्तूरबा गाँधी के व्यक्तित्व को अक्सर दबा दिया गया।

कस्तूरबा गाँधी
कस्तूरबा गाँधी

जब महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया, तो कस्तूरबा गाँधी भी सक्रिय रूप से इसमें जुड़ गईं। 1913 में उन्हें वहाँ पहली बार जेल भी हुई। ये वो दौर था जब महिलाएँ सार्वजनिक जीवन में न के बराबर थीं। लेकिन कस्तूरबा गांधी ने जातीय भेदभाव, रंगभेद और असमानता के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। एक महिला के लिए जेल जाना, उस समय के सामाजिक ढाँचे के खिलाफ था — और यहीं से कस्तूरबा एक सशक्त और विवादास्पद चेहरा बन गईं।

महात्मा गांधी ने अस्पृश्यता के खिलाफ जीवन भर संघर्ष किया, लेकिन उन्होंने कई बार इसके खिलाफ ऐसे प्रतीकात्मक कार्य किए जो कस्तूरबा गाँधी को असहज लगते थे। एक घटना में जब महात्मा गांधी ने अछूत माने जाने वाले हरिजन समुदाय के लोगों को अपने आश्रम में रहने के लिए बुलाया, तो कस्तूरबा गाँधी ने इसका विरोध किया। उन्होंने कहा कि जब उनके अपने बच्चों को पर्याप्त खाना नहीं मिल रहा, तो और लोगों को पालने का बोझ वो कैसे उठयएंगी ?
महात्मा गांधी ने इसे “आत्मिक लड़ाई” का हिस्सा बताया, लेकिन कस्तूरबा गाँधी ने इसे व्यवहारिकता की दृष्टि से देखा। इस मुद्दे पर उनके बीच लंबे समय तक मतभेद भी रहा।

कस्तूरबा गाँधी अक्सर इस बात से पीड़ित थीं कि महात्मा गांधी ने राष्ट्र को हमेशा परिवार से ऊपर रखा। जब उनके बेटे हरिलाल ने अपने पिता के आदर्शों को न मानकर अलग रास्ता चुना, तब कस्तूरबा गाँधी ने हरिलाल का साथ दिया।

उन्होंने महात्मा गांधी से अनुरोध किया कि वे अपने बेटे को समझें, उसे अपनाएं। लेकिन महात्मा गांधी ने सख्ती दिखाई। हरिलाल के शराब और असफलताओं भरे जीवन को लेकर कस्तूरबा गाँधी अंदर से टूट गईं — लेकिन सार्वजनिक रूप से उन्होंने कभी इसे ज़ाहिर नहीं होने दिया।

कस्तूरबा गाँधी
कस्तूरबा गाँधी

कस्तूरबा गाँधी एक पारंपरिक महिला थीं, लेकिन वे अपने अधिकारों को लेकर सजग थीं। उन्होंने कई बार महात्मा गांधी के फैसलों पर सवाल उठाए — विशेष रूप से उन फैसलों पर जो परिवार या उनके शरीर से जुड़े थे। उसी दौरान एक बार महात्मा गांधी ने कस्तूरबा गाँधी से कहा कि वे उनके “सेवक” हैं, और वे स्वयं “गुरु”। इसपर कस्तूरबा गाँधी ने दो टूक कहा — “मैं तुम्हारी पत्नी हूँ, सेविका नहीं।” और यह संवाद आज भी स्त्री-सशक्तिकरण की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।

कस्तूरबा गांधी की मृत्यु 22 फरवरी 1944 को पुणे के आगा खान महल में हुई, जहाँ वे ब्रिटिश हुकूमत द्वारा कैद थीं। उनकी मृत्यु के समय, वे गंभीर रूप से बीमार थीं — लेकिन उन्हें समय पर इलाज नहीं मिला। महात्मा गांधी खुद उनके पास थे, और ये उनके जीवन का सबसे भावुक पल था। उनकी अंतिम यात्रा एक सच्चे सेनानी की यात्रा थी — जिसने नारी शक्ति, असहमति और आत्मसम्मान का प्रतीक बनकर जीवन जिया।

जब हम कस्तूरबा गांधी के जीवन को देखते हैं, तो हम पाते हैं कि वो केवल “महात्मा गांधी की पत्नी” नहीं थीं। वे एक विचार थीं, एक आंदोलन थीं, और कई बार एक विरोध का स्वर भी थीं। आज उनके जन्मदिवस पर हम उन्हें याद करते है।

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