तारापीठ मंदिर सिद्धियाँ पाने और मनोकामना पूर्ति के लिए प्रसिद्ध…..16 may

तारापीठ मंदिर
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तारापीठ मंदिर सिद्धियाँ पाने और मनोकामना पूर्ति के लिए प्रसिद्ध…..16 may

कोलकाता से 264 किलोमीटर की दूरी पर बीरभूम में बहने वाली द्वारका नदी के तट पर तारापीठ मंदिर है। हिंदू लोग इस प्राचीन मंदिर को बहुत पवित्र मानते हैं। यह शाही मंदिर भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहाँ आज भी तांत्रिक अनुष्ठान किए जाते हैं। यह हर समय व्यस्त रहता है और गरीब लोग अक्सर फ्री खाना खाने आते हैं।

तारापीठ मंदिर
तारापीठ मंदिर

किंवदंती कहती है कि भगवान शिव ने सती की एक आँख यहाँ तारापीठ में गिरी थी जब वे ब्रह्मांड में घूम रहे थे और उनके जाने पर शोक मना रहे थे। इस मान्यता के अनुसार, बंगाली में तारा आँख का अर्थ होता है, इसलिए गाँव का नाम चांदीपुर से बदलकर तारापीठ कर दिया गया। यही कारण है कि यह मंदिर माँ तारा को समर्पित है। तारापीठ मंदिर में भगवान शिव के विनाशकारी पक्ष को चित्रित किया गया है।

हिंदू धर्म में माँ तारा को महान ज्ञान की दस देवियों में से दूसरी माना जाता है, जिसे कालिका, भद्र-काली और महाकाली भी कहते हैं। वह तांत्रिक रूप में देवी दुर्गा हैं। यह मंदिर रहस्यों और रोमांचक तथ्यों से भरा एक वास्तुशिल्प आश्चर्य है, जो इसे देखने लायक बनाता है।

देवी सती का कौन सा अंग गिरा था? पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में स्थित तारापीठ का महाश्मशान घाट हिंदू धर्म में मां तारा और काली की पूजा करने के लिए सबसे पवित्र स्थानों में से एक है। यहाँ भी देवी सती के शरीर का एक अंग गिरा था, इसलिए यह एक शक्तिपीठ बन गया। चलिए जानते हैं कि देवी सती का कौन सा अंग यहाँ गिरा था और इस स्थान की महिमा क्या है।

भारत में 51 पवित्र शक्तिपीठों में से एक है तारापीठ। पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में स्थित यह तारापीठ मां तारा की पूजा करने के लिए जाना जाता है। तांत्रिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए भी यह अच्छा स्थान है। यह तारापीठ भगवान शिव की पहली पत्नी सती की तीसरी आँख का तारा गिरा था। देवी सती की तीसरी आँख शक्ति, क्रोध और विनाश का प्रतीक है।

तारापीठ मंदिर
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पौराणिक कथाओं के अनुसार, शिव ने माता सती को पिता के अपमान के कारण यज्ञ कुंड में कूदकर मार डाला, तो शिव ने उनका शव अपने कंधे पर रखकर महातांडव करने लगा। ब्रह्मांड का विनाश उनके महातांडव से निश्चित था। तब भगवान विष्णु ने माता के क्रोध को शांत करने के लिए अपने चक्र से उसके शरीर को कई टुकड़ों में काट दिया। ये टुकड़े धरती पर जाकर गिरे। तारापीठ में माता सती की पुतली का तारा गिर गया।

तारापीठ को भगवान राम के गुरु वशिष्ठ मुनि का सिद्धासन बताया जाता है, जो वामाखेपा जैसे भक्तों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ कहा जाता है कि महर्षि वशिष्ठ ने माँ तारा की आराधना करके सिद्धियाँ प्राप्त कीं। उस समय उन्होंने भी मंदिर बनाया था, लेकिन वह बाद में जमीन के नीचे गिर गया और फिर एक व्यापारी जयव्रत ने इसे बनाया।

तारापीठ मंदिर, माता के चमत्कार की कहानियों के कारण बहुत मशहूर है। यहाँ महाशमशान में ही तारा देवी का पादपद मंदिर है, जो तंत्र साधना के लिए अनुकूल है। यहाँ पर वामाखेपा सहित कई संतों की समाधियाँ हैं। मुंडमालनी भी है। कहा जाता है कि द्वारका नदी में स्नान करने जाते समय काली माँ अपने गले की मुंडमाला यहीं रखती है। यह एक शमशान भी है। मंदिर में आदिशक्ति के कई रूप दिखाए गए हैं, साथ ही देवी की तीन आँखें, जिसे तारा भी कहते हैं। इस मंदिर में शिव भगवान की प्रतिमा भी है।

तीन फीट की धातु की माँ तारा की मूर्ति गर्भगृह में है। यहाँ एक मूर्ति में भगवान शिव के बच्चे रूप को माँ तारा ने दूध पिलाते हुए दिखाया गया है, क्योंकि माँ तारा ने समुद्र मंथन के दौरान उनके विष के क्रोध को शांत किया था। यही कारण है कि माँ तारा को भगवान शिव के सम्मान की उपाधि भी दी गई है।

तांत्रिक भी इस मंदिर में शराब पीते हैं, जो प्रसाद के तौर पर चढ़ाया जाता है। यहाँ हर दिन जानवरों की बलि दी जाती है। तंत्र शक्ति को मानने वालों के लिए तारापीठ भी महत्वपूर्ण है। तारापीठ मंदिर के गर्भगृह में शमशान में जलने वाले शव के धुएँ से इसका महत्व बढ़ जाता है। तारापीठ आने से सिद्धि प्राप्त करना बहुत आसान हो जाता है। मंदिर के निकट प्रेत-शिला में लोग पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंड दान करते हैं। पौराणिक कहानियों में कहा जाता है कि भगवान राम ने भी यहाँ अपने पिता का तर्पण किया और अपने शरीर को यहीं डाल दिया था।

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