मंगल पांडे की पुण्यतिथि पर जमशेदपुर के कई जगहों पर उन्हें याद करते हुए दी गई श्रद्धांजलि

मंगल पांडे की पुण्यतिथि पर जमशेदपुर के कई जगहों पर उन्हें याद करते हुए दी गई श्रद्धांजलि
महर्षि भृगु क्षेत्र के लोगों ने देश के महान स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडेय की पुण्यतिथि पर उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया।
जमशेदपुर में रहने वाले महर्षि भृगु क्षेत्र के लोगों ने एक दूसरे से परिचय बनाने और समाज को विकसित करने के लिए जमशेदपुर का गठन किया, जिसमें विनोद सिंह, पूर्व भाजपा जिला अध्यक्ष, को अध्यक्ष बनाया गया। इस ग्रुप में सभी सनातनी लोग शामिल हैं। यह ग्रुप अपने क्षेत्र की विरासत को आने वाली पीढ़ी तक पहचानने और एक दूसरे से जुड़ने के लिए बना है।
आज देश के महान क्रांतिकारी एवं स्वतंत्रता सेनानी देशभक्त मंगल पांडे के पुण्यतिथि पर पहले मकर संक्रांति समारोह और फिर होली मिलन का कार्यक्रम हुआ। टाटा पिगमेंट्स फैक्ट्री गेट के पास मंगल पांडे की मूर्ति पर माल्यार्पण हुआ। अध्यक्ष विनोद सिंह सहित प्रमुख सदस्यों में एच पी शुक्ला, मुन्ना चौबे, विजय सिंह, श्रीकांत मिश्रा, देवेंद्र पांडे, अशोक सिंह, हरिप्रसाद शुक्ला, अमृतपाल, नितेश कुमार सिंह, चंद्रशेखर सिंह, तापस, बरमेश्वर पांडे, हेमंत तिवारी, महंत सिंह, संजय सिंह, पंकज तिवारी, कालेश्वर पांडे शामिल थे।
शहीद मंगल पांडेय के पुण्यतिथि पर वृद्धा आश्रम में फल वितरण भी किया गया।
जमशेदपुर में शहीद मंगल पांडेय की पुण्यतिथि पर ब्राह्मण युवा शक्ति संघ ने अप्पू तिवारी के नेतृत्व में आशीर्वाद वृद्ध आश्रम में फल वितरण किया। पहले मंगल पांडेय की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी गई।
शहीद मंगल पांडेय की पुण्यतिथि पर ब्राह्मण युवा शक्ति संघ के सदस्यों ने अप्पू तिवारी के नेतृत्व में साकची स्थित आशीर्वाद वृद्ध आश्रम में फल वितरण किया। इससे पूर्व शहीद मंगल पांडेय की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी गई। अप्पू तिवारी ने कहा कि, प्रथम स्वतंत्रता सेनानी शहीद मंगल पांडेय युवाओं के आदर्श हैं। हम शहीद मंगल पांडेय के पद चिन्हों पर चलने का सदैव प्रयास करते हैं। डीडी त्रिपाठी ने कहा कि देश शहीदों को उचित सम्मान अब तक नहीं दे पाई है, इसका मलाल रह गया है।

मंगल पांडे कौन थे?
19 जुलाई 1827 को जन्मे भारतीय सैनिक मंगल पांडे (8 अप्रैल 1857 को अकबरपुर, भारत) 8 अप्रैल 1857 को बैरकपुर में मर गए। 29 मार्च 1857 को वे ब्रिटिश अधिकारियों पर हमला करने वाले थे, जो उस समय की पहली बड़ी घटना थी, जिसे बाद में ‘भारत माता की जय’ कहा गया। भारत में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम, या सैनिक विद्रोह।
पांडे का जन्म फैजाबाद के पास एक कस्बे में हुआ था, जो अब उत्तर भारत के पूर्वी उत्तर प्रदेश राज्य में है, हालांकि कुछ लोग उनके जन्म स्थान को ललितपुर (वर्तमान दक्षिण-पश्चिमी उत्तर प्रदेश में) के पास एक छोटे से गाँव के रूप में बताते हैं। वह एक उच्च जाति के ब्राह्मण ज़मींदार परिवार से थे, जो दृढ़ हिंदू मान्यताओं को मानते थे। पांडे 1849 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हुए, कुछ खातों से पता चलता है कि उन्हें एक ब्रिगेड द्वारा भर्ती किया गया था जो उनके आगे मार्च कर रही थी। उन्हें 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री की 6वीं कंपनी में एक सैनिक (सिपाही) बनाया गया था।
बहुत से ब्राह्मण शामिल थे। उन्हें 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री की 6वीं कंपनी (जिसमें बहुत से ब्राह्मण शामिल थे) में सैनिक (सिपाही) बनाया गया क्योंकि वे महत्वाकांक्षी थे और अपने पेशे को भविष्य में सफलता के लिए एक कदम मानते थे। सेना में काम करना पांडे को सफलता का एक उपाय समझते थे।
हालाँकि, पांडे की धार्मिक मान्यताएँ उनके करियर के लक्ष्यों से टकरा गईं। उन्हें 1850 के दशक के मध्य में बैरकपुर में गैरीसन में एक नए सैनिक ने अपने साथ ले लिया। भारत में एनफील्ड राइफल का उपयोग हुआ, जिसमें हथियार भरने के लिए सैनिक को चर्बी वाले कारतूसों के सिरे को काटना पड़ता था। हिंदुओं और मुसलमानों ने इस्तेमाल की जाने वाली चर्बी को घृणित करने वाली अफवाह फैली। सिपाहियों ने सोचा कि अंग्रेजों ने कारतूसों पर चर्बी जानबूझकर डाली थी।
29 मार्च 1857 की घटनाओं को कई तरह से बताया गया है। हालाँकि, सामान्य राय यह है कि पांडे ने अपने साथी सिपाहियों को ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ उठने के लिए उकसाने की कोशिश की, दो अधिकारियों पर हमला किया और रोके जाने के बाद खुद को गोली मारने की कोशिश की, लेकिन अंततः पकड़ा गया और गिरफ्तार कर लिया गया।
उस समय की कुछ रिपोर्टों ने बताया कि वह ड्रग्स के संपर्क में था, शायद भांग या अफीम, और उसकी क्रियाओं को पूरी तरह से नहीं जानता था। पांडे को जल्द ही मामला दर्ज किया गया और मौत की सजा सुनाई गई। उनकी फांसी 18 अप्रैल के लिए तय की गई थी, लेकिन ब्रिटिश अधिकारियों ने डर लगाया कि अगर वे इंतजार करते तो विद्रोह भड़क जाएगा, इसलिए तारीख को 8 अप्रैल कर दिया।

मृत्यु
अंग्रेजों ने मंगल पांडे को फांसी देने का दिन 18 अप्रैल 1857 निर्धारित किया था। साथ ही, वे इस बात की भी चिंता करते थे कि देर करने से विद्रोह और भी भड़क सकता है। इसलिए उन्होंने सजा सुनाए जाने के अगले दिन, 7 अप्रैल को फांसी देने की योजना बनाई। लेकिन जलादों ने मना कर दिया।
इसके बाद अंग्रेजों ने कलकत्ता से जल्लाद बुलवाए और बैरकपुर के परेड ग्राउंड में अगले दिन आठ अप्रैल की सुबह मंगल पांडे को फांसी दी जा सकी। भारत अपने इस लाल की याद में आठ अप्रैल को शहादत दिवस के रूप में मनाता है।
हमें इतने संघर्ष और कुर्बानी के बाद ये आज़ादी मिली, हमारे अधिकार मिले लेकिन हम इसकी सही कीमत समझ नहीं पा रहे। पहले स्कूल की किताबों में सभी स्वतंत्रता सेनानी के पाठ को पढ़ाया जाता था, लिखा होता था जिससे हम शहीद हुए स्वतंत्रता सेनानी के जीवन के संघर्ष को जान पाते थे, लेकिन अभी कुछ फैशन का दौर ऐसा चला है जहाँ लोग सच्ची बातें और उनकी जानकारी से महरूम रहते हैं। गुलामी का दौर कितना कठिन था, ये शायद शब्दों में कह पाना मुश्किल है। स्वतंत्रता और देश प्रेम की चिंगारी क्या होती है, इन जैसे शहीद की कुर्बानी ही बताती है। धन्य है वो माँ जिन्होंने ऐसे लाल को जन्म दिया।
भारत में पांडे को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में स्मरण किया जाता है। 1984 में भारत सरकार ने उनकी छवि वाले एक स्मारक डाक टिकट जारी किया। 2005 में उनके जीवन को चित्रित करने वाली एक फ़िल्म और मंच नाटक भी आई।