‘सत्या’ के भीखू म्हात्रे से लेकर ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ के सरदार खान तक का सफर (मनोज बाजपेयी) 23 April

राम गोपाल वर्मा से हुई अनबन
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‘सत्या’ के भीखू म्हात्रे से लेकर ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ के सरदार खान तक का सफर (मनोज बाजपेयी)23 April

मनोज बाजपेयी जिनका जन्म बिहार के बेलवा गाँव में 23 अप्रैल 1969 को हुआ था। यानी की आज ही के दिन मनोज ब्ज्पयी का जन्मदिन है। छोटे से गाँव से निकलकर नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा तक का सफर आसान नहीं था। तीन बार NSD से रिजेक्ट हुए, लेकिन हार नहीं मानी। “कहते हैं न, जो झुकता नहीं, वही एक दिन सबको झुका देता है।” 1994 में शेखर कपूर की फिल्म बैंडिट क्वीन से शुरुआत की, लेकिन पहचान मिली 1998 में राम गोपाल वर्मा की फिल्म सत्या से। भीखू म्हात्रे का किरदार आज भी लोगों की ज़बान पर है।

'सत्या' के भीखू म्हात्रे से लेकर 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' के सरदार खान तक का सफर (मनोज बाजपेयी)
‘सत्या’ के भीखू म्हात्रे से लेकर ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ के सरदार खान तक का सफर (मनोज बाजपेयी)

मनोज बाजपेयी को शुरुआत में ‘outsider’ कहा गया। उन्हें ग्लैमर वर्ल्ड के लिए ‘fit’ नहीं माना गया। उनका लुक, उनके बोलने का अंदाज़, सब कुछ पर सवाल उठे। कुछ फिल्ममेकर्स ने उन्हें ये तक कह दिया था कि वे हीरो नहीं, कैरेक्टर आर्टिस्ट ही रहेंगे। पर उन्होंने अपने टैलेंट के ज़रिये बॉलीवुड में अपनी नई पहचान बनायीं।

राम गोपाल वर्मा से हुई अनबन

मनोज बाजपेयी और राम गोपाल वर्मा की जोड़ी ने सत्या, कौन, शूल जैसी हिट फिल्में दीं। लेकिन बाद में दोनों के बीच मतभेद हो गए। राम गोपाल वर्मा ने एक इंटरव्यू में कहा था की मनोज एक शानदार एक्टर हैं, लेकिन उनसे काम लेना आसान नहीं। वो हर चीज़ में दखल देते हैं। वहीं मनोज बाजपेयी ने भी जवाब दिए की रामू ने उन्हें लॉन्च ज़रूर किया, लेकिन आगे का सफर उन्होंने खुद तय किया है। ये कोल्ड वार लंबे समय तक चला और दोनों ने फिर कभी साथ काम नहीं किया।

'सत्या' के भीखू म्हात्रे से लेकर 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' के सरदार खान तक का सफर (मनोज बाजपेयी)
‘सत्या’ के भीखू म्हात्रे से लेकर ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ के सरदार खान तक का सफर (मनोज बाजपेयी)

मनोज बाजपेयी को कई शानदार परफॉर्मेंस के बावजूद लंबे समय तक नेशनल अवॉर्ड या फिल्मफेयर जैसे बड़े पुरस्कार नहीं मिले। लोगों ने इसे ‘bias’ कहा।
2010 में राजनीति, 2012 में गैंग्स ऑफ वासेपुर, और 2016 में अलीगढ़ – इन फिल्मों में शानदार अभिनय के बावजूद उन्हें अवॉर्ड नहीं मिला। इस पर सोशल मीडिया पर कई बार बवाल हुआ। हालाँकि बाद में भोंसले और अलीगढ़ जैसी फिल्मों के लिए उन्हें राष्ट्रीय सम्मान मिला, लेकिन काफी देर बाद।

2016 में मनोज बाजपेयी ने फिल्म अलीगढ़ में प्रोफेसर श्रीनिवास रामचंद्र सिरस का किरदार निभाया था। ये किरदार एक समलैंगिक प्रोफेसर पर आधारित था, जिन्हें उनकी sexual orientation की वजह से नौकरी से निकाल दिया गया था। इस फिल्म को लेकर देशभर में बहस छिड़ गई। कई संगठन इसे ‘समाज विरोधी’ कहने लगे। कुछ सिनेमाघरों ने तो फिल्म दिखाने से इनकार कर दिया। लेकिन मनोज ने डटकर जवाब दिया और उनके फंस ने उनका समर्थन भी किया।

अमेज़न प्राइम की सीरीज़ ‘द फैमिली मैन’ ने मनोज को नया जीवन दिया। लेकिन पाकिस्तान सरकार और कुछ भारतीय मुस्लिम संगठनों ने शो को ‘इस्लामोफोबिक’ बताया। इस शो में पाकिस्तान और कश्मीर को लेकर जो कंटेंट था, उस पर विवाद खड़ा हो गया। ‘द फैमिली मैन’ शो को बैन करने की माँग की गई। हालांकि सोशल मीडिया पर उन्हें जमकर ट्रोल किया गया और कुछ लोगों ने तो शो को बॉयकॉट करने की मांग भी की। पर इसके पीछे की कहानी ने लोगो का दिल जीत लिया था।

इन तमाम विवादों के बावजूद मनोज बाजपेयी ने कभी अपनी कला से समझौता नहीं किया। उन्होंने साबित किया कि संघर्ष, ईमानदारी और टैलेंट से कोई भी ऊँचाइयाँ छू सकता है। विवाद उनके रास्ते में ज़रूर आए, लेकिन वो रुके नहीं। मनोज बाजपेयी ने बार-बार साबित किया कि अगर इरादे मजबूत हों, तो दुनिया की कोई ताक़त आपको रोक नहीं सकती। आज भी वो सिनेमा के ऐसे कलाकार हैं, जो हर किरदार में जान डाल देते हैं। और शायद इसी वजह से, लोग उन्हें ‘अभिनय का देवता’ तक कहने लगे हैं।

मनोज बाजपाई एक ऐसा नाम है जिसने अपनी दमदार अदाकारी से बॉलीवुड में अलग मुकाम हासिल किया…
आज उनके जन्मदिन के अवसर पर हम उन्हें शुभकामनाये देते है और प्रार्थना करते हैं कि वे हमेशा स्वस्थ, खुशहाल और ऊर्जावान रहें।

 

धन्यवाद

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