होली से जुड़ी कथाएं, महत्व औऱ कब मानई जाती हैँ होली

हिंदू धर्म में होली को बड़े उत्साह से मनाते हैं। इस पर्व की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरुआत होती है। इससे जुड़ी कहानी भी महत्वपूर्ण है।

देशभर में अलग-अलग तरह से मनाई जाती है होली। भारत के अधिकांश प्रदेशों में होली का त्योहार अलग-अलग नाम और रूप से मनाया जाता है। जहां एक तरफ ब्रज की होली आकर्षण का केंद्र होती है, वहीं बरसाने की लठमार होली को देखने के लिए भी दूर-दूर से लोग आते हैं। मथुरा और वृंदावन में 14 दिनों तक होली धूमधाम से मनाई जाती है। इनके अलावा बिहार में फगुआ, छत्तीसगढ़ में होरी, पंजाब में होला मोहल्ला, महाराष्ट्र में रंग पंचमी, हरियाणा में धुलंडी जैसे नामों से होली का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। प्राचीन काल में होली चंदन और गुलाल से ही खेली जाती थी, लेकिन समय के साथ-साथ इसमें बदलाव आता गया और वर्तमान समय में प्राकृतिक रंगों का भी उपयोग किया जाने लगा, जिससे त्वचा और आंखों पर कोई भी दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है।

होली को हिंदू धर्म में सबसे प्राचीन पर्व माना जाता है। यह खुशियों का त्योहार भगवान श्री कृष्ण और उनके भक्त प्रह्लाद से जुड़ा है। होली के दिन पूरे देश में गुलाल और अबीर से रंगों की होली खेली जाती है और रंगोत्सव को उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। रंगों के इस पवित्र त्योहार को वसंत का संदेश भी देते हैं। यही नहीं, देश भर में इस उत्सव को कई नामों और तरीकों से मनाया जाता है, जिनमें फगुआ और धूलंडी सबसे महत्वपूर्ण हैं। विशेष बात यह है कि ब्रज में होली का त्योहार वसंत पंचमी से शुरू होता है, जिस दिन गुलाल से होली खेली जाती है। फाल्गुन मास में इस पर्व को मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी के नाम से भी जाना जाता है।

कब मनाई जाती है होली?

हिंदू पंचांग के अनुसार होली पर्व फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होता है। होली के उत्सव से एक दिन पहले होलिका दहन का आयोजन किया जाता है, जिसके बाद रंगीन होली का उत्सव मनाया जाता है। नारद पुराण और भविष्य पुराण जैसे प्राचीन लेखों में और धार्मिक ग्रंथों में होली पर्व का वर्णन भी मिलता है। संस्कृत और इस कालखंड के कई प्रसिद्ध साहित्यकारों ने भी होली का उल्लेख किया है। इसके अलावा, भारत के विभिन्न भागों में होली से जुड़े कई प्राचीन स्मारक हैं।

होली पर्व से जुड़ी कथाएं

धर्म ग्रंथों और शास्त्रों में होली से जुड़ी कहानियां हैं। भक्त प्रह्लाद और भगवान श्री हरि की कहानियां सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं। सब लोग जानते हैं कि होलिका दहन होली की शुरुआत है। इसमें भक्त प्रह्लाद को याद किया जाता है। पौराणिक ग्रंथों में कहा गया है कि होलिका, हिरण्यकश्यपु की बहन, प्रह्लाद को गोद में उठाकर अग्नि में बैठ गई। तब होलिका को भस्म करके भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यपु की चाल को नष्ट कर दिया, जिससे प्रह्लाद श्रीहरि की कृपा से बच गए। तब से होलिका दहन व्यापक रूप से आयोजित किया जाता है।

धर्माचार्यों का कहना है कि जब भगवान श्री कृष्ण ने पूतना नामक राक्षसी को मार डाला, तो सभी लोग खुशी से होली का पर्व मनाया। यह भी बताता है कि भगवान श्री कृष्ण ने पूर्णिमा तिथि के दिन गोपियों के साथ रास-लीला रचाई और अगले दिन रंगीन होली खेली। यही नहीं, महाकवि सूरदास ने बसंत और होली पर सत्तर से अधिक पद लिखे हैं। कुछ जगहों पर होली भगवान शिव से भी जुड़ी हुई है।

होली पर्व का महत्व

धार्मिक मतों में होली पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है, जैसे वसंत का पर्व है। इस दिन लाल रंग बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि सभी लोग अपने मतभेद भुलाकर एक दूसरे को रंगते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि लाल रंग सौहार्द और प्यार का प्रतीक है, जिससे स्नेह और प्रेम बढ़ता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार होली के दिन भगवान श्री कृष्ण, श्री हरि और सभी देवी-देवताओं की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि और सभी बुरी शक्तियों का नाश होता है।

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