विश्व स्वाथ्य दिवस 2025: सेहत सबसे बड़ी पूंजी

विश्व स्वाथ्य दिवस 2025: सेहत सबसे बड़ी पूंजी
“एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन और दिल भी रहता है, जो हमारी सोच को भी स्वस्थ और पवित्र रखता है.”
हर वर्ष हम 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाते हैं. दरअसल ये दिन सिर्फ डॉक्टरों या स्वास्थ्य कर्मचारियों के लिए नहीं होता है, बल्कि हम सभी के लिए बेहद ख़ास होता है. ये एक दिन हमें ये एहसास दिलाता है
कि हमारे लिए हमारी सबसे बड़ी पूंजी हमारा स्वास्थ्य ही है. अगर स्वास्थ्य ठीक है, तो बाकी सब भी ठीक ही रहता है.

कहानी स्वास्थ्य दिवस की नींव की
विश्व स्वास्थ्य दिवस की शुरुआत हुई थी दूसरे विश्व युद्ध के बाद से. दरअसल उस दौर में कई देश महामारी, कुपोषण और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी से जूझ रहे थे। ऐसे में एक वैश्विक संस्था की जरूरत महसूस की गई, जो सभी देशों के लिए स्वास्थ्य नीतियां बना सके। इस सोच के साथ World Health Organization (WHO) की स्थापना की गयी.
7 अप्रैल 1948 को WHO की स्थापना हुई और इसी यादगार दिन को हर साल वर्ल्ड हेल्थ डे के रूप में मनाने की परंपरा 1950 से शुरू हुई। इस दिन को मनाने के मुख्या लक्ष्य था- लोगों को यह एहसास कराना कि सेहत सिर्फ डॉक्टर या हॉस्पिटल की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हमारी खुद की प्राथमिकता होनी चाहिए।

वर्ल्ड हेल्थ डे: साल 2025 की थीम
विश्व स्वास्थ्य दिवस हर वर्ष एक खास विषय के साथ मनाया जाता है, जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की टीम तय करती है। साल 2025 की थीम है: ‘स्वस्थ शुरुआत, आशाजनक भविष्य’ (Healthy Beginnings, Hopeful Futures). यह विषय मुख्य रूप से माँ और नवजात बच्चों की सेहत और सुरक्षा पर ध्यान देता है.
इस विषय के माध्यम से लोगों को यह बताना है कि गर्भावस्था, बच्चे के जन्म और उसके बाद की देखभाल के दौरान अच्छी सेवाओं की कितनी आवयशकता है, ताकि माँ और नवजात शिशुओं की मौत के आंकड़ों को कम किया जा सके.
आधुनिक युग में स्वास्थ्य को नज़रअंदाज़ करना गलत
जिस तरह से आज के युवा आधुनिकता की चादर ओढ़े प्रगति की ओर तो बेशक बढ़ते जा रहे हैं, लेकिन कहीं न कहीं अपने स्वास्थ्य के साथ समझौता भी कर रहे हैं. जिस तरह से उनके कामों की लिस्ट लम्बी होती जा रही है, बिमारियों की लिस्ट उससे भी ज़्यादा लम्बी होती दिखाई दे रही है.
अपनी दिनचर्या में बदलाव लाने की ज़रूरत है. बच्चे जंक फ़ूड और बाहर के खानों की तरफ ज़्यादा प्रभावित हो रहे हैं. स्क्रीन टाइम इतना ज़्यादा हो रहा है कि शारीरिक व्यायाम में भारी कमी दिखाई दे रही है.
ये सभी आने वाली पीढ़ियों को कमज़ोर बना रही है. ये हमें समझना होगा कि समय के साथ बढ़ना ज़रूरी है, लेकिन स्वास्थ्य कि कीमत को भी समझना उतना ह ज़रूरी है.

भारत सरकार का स्वास्थ्य को लेकर कार्य सराहनीय कदम
सार्वजनिक स्वास्थ्य, विशेष रूप से माँ और बच्चे की देखभाल में भारत की प्रगति, न्यायसंगत और समावेशी स्वास्थ्य सेवा के प्रति मजबूत प्रतिबद्धता को दर्शाती है। आयुष्मान भारत, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और जेएसवाई, पीएमएसएमए, सुमन और लक्ष्य जैसे लक्षित मातृ कार्यक्रमों जैसी परिवर्तनकारी पहलों के माध्यम से,
देश ने मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में उल्लेखनीय कमी की है और संस्थागत प्रसव की पहुँच में सुधार किया है। एबीडीएम और ईसंजीवनी जैसे डिजिटल स्वास्थ्य हस्तक्षेपों, रोग उन्मूलन अभियानों और टेली-मानस के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य सहायता के पूरक के रूप में, भारत सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की दिशा में लगातार आगे बढ़ रहा है।
▪ टेली-मानस (राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम) अब 36 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 53 सेल संचालित करता है, जो 20 भाषाओं में 24×7 मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान करता है।
▪ 5 अप्रैल 2025 तक, 20 लाख से अधिक कॉल संभाले गए हैं, पिछले तीन वर्षों में एनटीएमएचपी को 230 करोड़ से अधिक आवंटित किए गए हैं।
▪ मनोआश्रय डैशबोर्ड के अनुसार, 5 अप्रैल 2025 तक देश में लगभग 440 पुनर्वास गृह (आरएच)/हाफवे होम (एचएच) हैं।
कुल मिलकर कहा जाये तो हमारे स्वास्थ्य की देखभाल की ज़िम्मेदारी जितनी भारत सरकार और स्वास्थ्य कर्मचारियों की है, उससे कहीं अधिक हमारी खुद की भी है. अगर हमें खुद में अपने स्वास्थ्य को लेकर सजगता आ जाएगी, तो देश की प्रगति और बेहतर ढंग से हो पायेगी. सबसे पहले अपने आप को जागरूक करें, समाज में अपने आप बदलाव दिखने लग जायेगा.