एक अनाथ बच्ची से स्टारडम तक का सफर 22 April

एक अनाथ बच्ची से स्टारडम तक का सफर
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एक अनाथ बच्ची से स्टारडम तक का सफर 22 April

कानन देवी का जन्म 22 अप्रैल 1916 को अविभाजित बंगाल के हावड़ा जिले में हुआ था। यानी के आज ही के दिन कानन देवी का जन्मदिन है। बचपन में ही उन्हें अपने माता-पिता को खो देना पड़ा और फिर उनका लालन-पालन एक देखरेख करने वाली महिला रमा चट्टोपाध्याय ने किया।

यह बात लंबे समय तक छिपी रही कि कनन देवी असल में रमा की गोद ली हुई संतान थीं। जब ये सच सामने आया, तो कई लोगों ने उनकी सामाजिक स्थिति पर सवाल खड़े किए। उन दिनों फिल्मी दुनिया को ‘भले घर की औरतों’ के लिए अच्छा नहीं माना जाता था, और जब ये राज खुला कि कनन देवी का कोई ‘खून’ संबंध नहीं था रमा से – तो कई अख़बारों ने उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि पर छींटाकशी शुरू कर दी।

स्टूडियो सिस्टम
स्टूडियो सिस्टम

फिल्म “देवदास” में पारो बनने का संघर्ष

कानन देवी ने बतौर बाल कलाकार 1926 में ‘जयदेव’ फिल्म से शुरुआत की थी। लेकिन वह दौर बेहद कठिन था। स्टूडियो सिस्टम में काम करने वाली महिलाओं को अक्सर ‘आसान’ चरित्र वाली समझा जाता था। एक बार जब उन्होंने एक नामी निर्माता की ‘अशोभनीय शर्त’ को ठुकरा दिया, तो इंडस्ट्री में उनके खिलाफ माहौल बनने लगा। खुद कनन देवी ने अपने संस्मरण में लिखा था कि – ‘अगर मैं किसी की बात न मानूं, तो मेरा करियर खत्म करने की धमकी मिलती थी।’ ये बयान अपने आप में उस दौर की महिला कलाकारों की स्थिति को उजागर करता है।

कानन देवी
कानन देवी

1930 के दशक में जब कनन देवी की ख्याति बुलंदियों पर थी, तभी उनके संबंध अभिनेता सह निर्माता शशधर मुखर्जी के साथ जोड़े जाने लगे। कहा जाता है कि दोनों के बीच काफ़ी नज़दीकियां थीं। लेकिन ये रिश्ता न तो कभी खुले तौर पर स्वीकारा गया और न ही विवाह में बदला। इस ‘मामले’ ने मीडिया को खूब मसाला दिया। बंगाली और हिंदी दोनों अख़बारों में इस विषय पर लेख छपने लगे। कुछ लेखों में कनन देवी को ‘दूसरी औरत’ तक कहा गया। इन अफवाहों से उनका मानसिक स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हुआ, और उन्होंने कुछ समय के लिए फिल्मों से दूरी बना ली।

1940 के दशक में कनन देवी ने इंडस्ट्री में महिलाओं के लिए बेहतर कामकाजी माहौल की मांग को लेकर आवाज़ उठाई। उन्होंने कोलकाता स्थित न्यू थिएटर्स में तकनीशियनों के साथ मिलकर एक मिनी स्ट्राइक का नेतृत्व किया। कानन देवी इस कदम को प्रोड्यूसर्स और स्टूडियो मालिकों ने एक ‘विद्रोह’ कहा। कई जगहों पर उनके पोस्टर्स फाड़े गए, और स्टूडियोज़ ने उन्हें ‘ब्लैकलिस्ट’ तक करने की धमकी दी। मगर कनन देवी झुकी नहीं। उन्होंने महिला कलाकारों के लिए ‘स्टैंडर्ड कॉन्ट्रैक्ट्स’ और ‘सेफ्टी क्लॉज’ की मांग रखी – और बाद में ये इंडस्ट्री में लागू भी हुए।

आत्मकथा और आत्म-निर्वासन का विवाद

1960 के दशक में जब कनन देवी ने फिल्मों से खुद को लगभग अलग कर लिया था, तब उन्होंने एक आत्मकथा लिखने की योजना बनाई। मगर जब किताब का ड्राफ्ट सामने आया, तो कई पुराने सहकर्मियों ने आपत्ति जताई। कहा गया कि कनन देवी ने जानबूझकर कुछ नामी कलाकारों – जैसे कि के.एल. सहगल और पृथ्वीराज कपूर – के साथ अपने रिश्तों को विवादास्पद अंदाज़ में पेश किया। प्रकाशक को मजबूरी में किताब की कुछ प्रतियां वापस मंगानी पड़ीं। हालांकि बाद में उन्होंने एक बहुत ही सौम्य संस्करण निकाला, लेकिन विवाद और ‘पुराने रिश्तों का बाजारूकरण’ का दाग उन पर लगा ही रहा।

कनन देवी एक कलाकार थीं, एक फाइटर थीं, और एक आइकन भी। उनके जीवन में विवाद ज़रूर आए, लेकिन उन्होंने कभी अपने आत्मसम्मान या कला से समझौता नहीं किया। उनका संघर्ष, उनकी हिम्मत और उनके फैसले आज की पीढ़ी की महिला कलाकारों के लिए एक मार्गदर्शन हैं। चाहे वो अपने सामाजिक बैकग्राउंड को लेकर विवाद हो, अफवाहें हों या इंडस्ट्री में बदलाव की लड़ाई – कनन देवी हमेशा अपनी शर्तों पर जीं।

आज कानन देवी के जन्मदिन के अवसर पर हम उनके कार्यो को नमन करते है और उन्हें याद करते है।

धन्यवाद

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