माता संतोषी का मंदिर राजस्थान के जोधपुर में अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए प्रसिद्ध 5 may

माता संतोषी का मंदिर राजस्थान के जोधपुर में अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए प्रसिद्ध 5 may
भारत में देवी को भक्ति के रूप में पूजा जाता है। शक्ति हासिल करने के लिए एक समय था जब देवी की पूजा की जाती थी क्योंकि शारीरिक शक्ति की अधिक आवश्यकता थी, लेकिन आज संतोष की ज्यादा आवश्यकता है, इसलिए संतोषी माता की पूजा करते हैं।
संतोषी माता के पिता गणेश हैं। राजस्थान में ऐतिहासिक जोधपुर (मारवाड़) की उत्तर दिशा में लाल सागर नामक एक सुंदर सरोवर पहाड़ों के बीच प्राचीन मण्डोर के मार्ग पर है।

इस स्थान पर मनोकामना पूरी करने वाली श्री संतोषी माता का प्राकृतिक प्राचीन मन्दिर है, जिसके आसपास वाट वृक्ष, पीपल, नीम और कई अन्य वृक्ष हैं। भारत में प्रथम श्रेणी का प्राकृतिक तीर्थ है, जो अद्भुत विशेषताओं से भरपूर है। पहाड़ी श्री संतोषी माँ के मन्दिर के ऊपर ऐसी छाई हुई है, मानो शेषनाग अपने फण से मातेश्वरी को छाया दे रहा है। सिंह और मातेश्वरी का प्राकृतिक पदचिन्ह इस पहाड़ी के ऊपर है।
मन्दिर के निकट एक सुंदर कुण्ड है, जहाँ भोलेनाथ की प्रतिमा विराजमान है। कुण्ड के निकट एक सुंदर झरना बहता है, जिसके ऊपर कई वर्षों से एक ही आकार का एक वृक्ष है। मन्दिर आज बहुत से भक्तों की इच्छाओं को पूरा कर रहा है।
गट संतोषी माता मंदिर, जोधपुर
भारत में, प्रगट संतोषी माता मंदिर, जोधपुर में देवी को भक्ति के रूप में पूजा जाता है। शक्ति हासिल करने के लिए एक समय था जब देवी की पूजा की जाती थी क्योंकि शारीरिक शक्ति की अधिक आवश्यकता थी, लेकिन आज संतोष की बजाय शक्ति की आवश्यकता है, इसलिए संतोषी माता की पूजा करते हैं। गणेश माता का पिता है।

लाल सागर एक सुंदर सरोवर है जो राजस्थान के ऐतिहासिक शहर जोधपुर (मारवाड़) की उत्तर दिशा में प्राचीन मण्डोर के रास्ते पर पहाड़ों के बीच स्थित है।
इस स्थान पर मनोकामना पूरी करने वाली श्री संतोषी माता का प्राकृतिक प्राचीन मन्दिर है, जिसके आसपास वाट वृक्ष, पीपल, नीम और कई अन्य वृक्ष हैं। भारत में प्रथम श्रेणी का प्राकृतिक तीर्थ है, जो अद्भुत विशेषताओं से भरपूर है। पहाड़ी श्री संतोषी माँ के मन्दिर के ऊपर ऐसी छाई हुई है, मानो शेषनाग अपने फण से मातेश्वरी को छाया दे रहा है। सिंह और मातेश्वरी का प्राकृतिक पदचिन्ह इस पहाड़ी के ऊपर है।
मन्दिर के निकट एक सुंदर कुण्ड है, जहाँ भोलेनाथ की प्रतिमा विराजमान है। कुण्ड के निकट एक सुंदर झरना बहता है, जिसके ऊपर कई वर्षों से एक ही आकार का एक वृक्ष है। मन्दिर आज बहुत से भक्तों की इच्छाओं को पूरा कर रहा है।
संतोषी माता मंदिर, जोधपुर
संतोषी माता के पिता गणेश हैं, और माता रिद्धी सिद्धि हैं, जो धन, सोना, चाँदी, मोती और मूंगा रत्नों से भरी हैं। गणपति देव की कमाई, गणपति ने बढ़ाई, सवाई, धन्धे में बरकत, दरिद्रता दूर, कलह क्लेश का नाश, सुख शांति का प्रकाश, बालकों की वृद्धि, धन्धे में मुनाफा की कमाई, मनोकामना पूर्ण, शोक विपति और चिंता दूर हो। संतोषी माता का नाम लो, जो सब कुछ बना देता है। प्रगट जय संतोषी माता की।

इस व्रत की कहानी बताते व सुनते समय हाथ में भुने हुए चने रखें। सुनने वाला व्यक्ति मुख से “जय संतोषी माता” कहे। कथा समाप्त होने पर गाय को हाथ का गुड़ और चना खिलाया जाए। चना और गुड़ को कलश के ऊपर बांट दें। कहानी शुरू करने से पहले, कलश को जल से भरकर उसके ऊपर चने और गुड़ का एक कटोरा रखें। कथा और आरती पूरी होने के बाद कलश के जल को घर में हर जगह छिड़कें, शेष जल को तुलसी की क्यारी में डालें।
आस्था और विश्वास से किया गया हर कार्य सफल होता है। आप भी इस मंदिर के दर्शन करना चाहते हैं तो जल्द ही अपने परिवार के साथ जोधपुर माता के दर्शन के लिए जरूर जाएं।