Baisakhi 2025: बैसाखी पर्व, जानें क्यों मनाते हैं यह पर्व, महत्व और कथा

Baisakhi 2025: बैसाखी पर्व, जानें क्यों मनाते हैं यह पर्व, महत्व और कथा
Baisakhi 2025 हिंदू और सिख धर्मों में बैसाखी का पर्व बड़े उत्साह से मनाया जाएगा। बैसाखी पर्व के दिन बहुत से सिख एकत्र होते थे और अपने गुरु का दर्शन कर उनका आशीर्वाद लेकर खुश होते थे। आइए बैसाखी पर्व का महत्व समझें।
बैसाखी कब है-
हिंदू पंचांग के अनुसार, यह पर्व आमतौर पर 13 या 14 अप्रैल को मनाया जाता है। इस साल बैसाखी का पर्व 14 अप्रैल 2025, सोमवार को मनाया जाएगा।
Baisakhi 2025: सिखों के तृतीय गुरु श्री गुरु अमरदास जी ने वैशाख मास के पहले दिन को पर्व के रूप में मनाने की परंपरा शुरू की। यह भी माना जाता है कि इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करेगा। यही कारण है कि बैसाखी को हिंदू धर्म और सिख धर्म का एक ही पर्व मानते हैं। 1699 में गुरु गोविंद सिंह जी ने वैसाखी के ही दिन आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ बनाया, जिससे इसका धार्मिक महत्व बढ़ गया। गुरु अमरदास जी के काल से, लोग हर साल सिख बैसाखी के दिन एकत्र होते थे और गुरु के दर्शन कर उनका आशीर्वाद लेकर खुश होते थे।

रबी की फसल, जो महीनों के कठिन परिश्रम के बाद खेतों में पक गई है, इस अवसर पर उनके उत्साह का एक और कारण है। इस तरह, बैसाखी आत्मिक लाभ और भौतिक उपलब्धि को एक साथ मिलाकर बनाई गई थी। 1699 की बैसाखी के दिन आनंदपुर साहिब में लगभग 80 हजार सिख पूरे भारत से आए। जब सजा दीवान समाप्त होने वाला था, गुरु गोविंद सिंह जी अचानक उठे और नंगी तेग लहराते हुए कहा कि उन्हें एक शीश चाहिए। सभी स्तब्ध हो गए। उनके बार-बार दोहराने पर, वह कुछ सीखा और खुद को प्रस्तुत किया। गुरु साहिब ने उसे आसपास के एक छोटे से तंबू में ले गए।
गुरु साहिब ने फिर एक-एक करके चार और शीश मांगे। गुरु साहिब ने बाद में पांचों सिखों को वापस लाकर उन्हें अमृत पिलाकर पांच ककारों से सजाया। उन्हें पंच पियारे कहा जाता था। गुरु गोविंद सिंह जी ने स्वयं भी अमृत छका, साथ ही वहां उपस्थित सभी लोगों ने भी चखा।
इस मौके पर गुरु गोविंद सिंह जी ने सिखों को खालसा कहा, जिसका अर्थ था सद्गुण धारण कर परमात्मा को समर्पित होना। खालसा समाज में कोई जाति, वर्ण या वर्ग नहीं था। यह ऐसे धर्मपालकों के साथ मेल खाता था, जो उपकार करने और दूसरों के हित में त्याग करने को सदा तैयार रहते थे। इसलिए इसे अकाल पुरख की सेना कहा जाता था। खालसा होना वास्तव में सर्वोच्च आत्मिक अवस्था है। खालसा का बल मानवीय मूल्यों के प्रति उसकी प्रतिबद्धता में है। गुरु गोविंद सिंह ने हथियारों को अंतिम विकल्प बताया। बैसाखी का पर्व उत्साह और गुरु गोविंद सिंह के मूल्यों का स्मरण भी है।
Baisakhi kyun manate hai: 14 अप्रैल को पंजाब में बैसाखी का पर्व मनाया जाएगा। यह माह बैसाख कहलाता है क्योंकि विशाखा नक्षत्र पूर्णिमा में है। यह वैशाखी भी कहलाता है। पंजाबी और सिख समुदायों में बैसाखी बहुत महत्वपूर्ण है।

बैसाखी क्यों मनाते हैं
पंजाबी लोग बैसाखी को नववर्ष की शुरुआत और ऋतु परिवर्तन का प्रतीक मानते हैं। बैसाखी, रबी की फसल कटाई करने के अलावा, बहुत ऐतिहासिक महत्व रखती है। 1699 में सिखों के दसवें और आखिरी गुरु गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ भी बनाया था।
बैसाखी पर्व की कथा
जब मुगलकालीन क्रूर शासक औरंगजेब ने लोगों पर भारी अत्याचार शुरू किया था। औरंगजेब ने खासकर सिख समुदाय पर क्रूरता की सारी सीमाएं पार कर दीं। औरंगजेब से लड़ाई लड़ने के दौरान दिल्ली के चांदनी चौक पर श्री गुरु तेग बहादुर जी की हत्या, अत्याचार की पराकाष्ठा थी। गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की जब वे औरंगजेब के इस अन्याय को देखा। यह पंथ हर तरह से मानवता की भलाई के लिए काम करना चाहता था। खालसा पंथ ने भाईचारे को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। खालसा पंथ ने मानवता के अलावा सामाजिक बुराइयों को दूर करने का भी प्रयास किया।

13 अप्रैल, 1699 को श्री केसगढ़ साहिब आनंदपुर में दसवें गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना कर दमन को समाप्त किया। 13 या 14 अप्रैल को बैसाखी का पर्व पहले नए साल की तरह मनाया जाता है।
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