लोक आस्था का महापर्व चैती छठ, आस्था और विश्वास का संगम

लोक आस्था का महापर्व चैती छठ, आस्था और विश्वास का संगम
Chaiti Chhath 2025: 1 अप्रैल से लोक आस्था का महापर्व चैती छठ शुरू हो गया है। चार दिनों तक चलने वाले इस उत्सव ने शहर और गांवों में श्रद्धा का वातावरण बनाया है। भक्त गंगा सहित प्रमुख नदियों में डुबकी लगाकर उन्हें पवित्र करते हैं। छठ पर्व की पूरी तैयारी हो चुकी है और व्रती एक कठोर उपवास करेंगे और पूजा करेंगे।
इस वर्ष मंगलवार, 1 अप्रैल से लोक आस्था का महापर्व चैती छठ शुरू हो गया है। नहाय-खाय की परंपरा के अनुसार, व्रती कद्दू-भात खाकर व्रत की शुरुआत करेंगे। अब चार दिन तक चलने वाले पर्व का अनुष्ठान शुरू हो गया है, और शहर-गांवों में श्रद्धा का वातावरण बन गया है। छठ व्रत को लेकर लोग गंगा सहित जिले की सभी प्रमुख नदियों में डुबकी लगाकर पवित्र हो रहे हैं, और पूजन सामग्री की खरीददारी जोरों पर है।
छठ घाटों की सफाई अंतिम चरण में

विभिन्न शहर और गांवों के सभी घाटों की सफाई अंतिम चरण में है, और प्रशासन पर्व को शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न कराने के लिए पूरी तरह से तैयार है। बाजार में पूजन सामग्री की दुकानें सज चुकी हैं, और लोग पारंपरिक तरीके से छठ पर्व मनाने की तैयारी कर रहे हैं। गांवों और शहर की गलियों में छठ गीतों की गूंज सुनाई देती है, मोबाइल फोन, टीवी और ऑडियो सिस्टम से छठ गीत बजते हैं। पूरा वातावरण श्रद्धापूर्ण हो गया है।
चैत्र महीने में और कार्तिक महीने में छठ पर्व दो बार मनाया जाता है। चैती छठ चैत्र महीने की चतुर्थी से सप्तमी तक मनाया जाता है। 1 अप्रैल से 4 अप्रैल तक चैती छठ मनाया जाएगा। 2 अप्रैल को रात 11.49 बजे शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि शुरू होगी और 3 अप्रैल को रात 9.41 बजे समाप्त होगी। 3 अप्रैल को सूर्य को डूबते हुए और 4 अप्रैल को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने से व्रत समाप्त होगा।
खरना कब: 2 अप्रैल बुधवार को शाम को खरना होगा। वह छठव्रती दिन भर निर्जला उपवास करेगी, फिर सूर्यास्त के बाद स्नान-ध्यान कर दूध-चावल का खीर बनाएगी। चावल और दूध से बने खीर का प्रसाद बनाने के लिए प्रत्येक व्रति ने अपने क्षेत्र और परंपरा के अनुसार आम की लकड़ी से बनी अग्नि पर बनाया जाएगा। इससे पहले छठी मईया का आह्वान और अग्निदेव की पूजा की जाती है। इस भोजन को खाने के बाद 36 घंटे का कठोर व्रत शुरू होगा।
तीसरा दिन: अनुष्ठान के तीसरे दिन, तीन अप्रैल, छठव्रती निर्जला व्रत रखेगी, जिसमें अस्ताचलगामी भगवान सूर्य को संध्याकाल में पहला अर्घ्य दिया जाएगा।
चौथा दिन: 4 अप्रैल की सुबह, जलाशयों, तालाबों और नदियों में उगते सूर्य को अर्ध्य देने के बाद छठ महापर्व का समापन होगा।
जानें कैसे होगा व्रत पारण: सूर्य मंदिर के पुजारी पंडित अमृत आनंद ने बताया कि उदीयमान भगवान सूर्य को दूसरा अर्घ्य देने के बाद सूर्य की पूजा की जाती है। पूर्णाहुति पर छठ व्रतियों को ब्राह्मण भोजन, अन्न, फल दान करना चाहिए। छठव्रतियों को इससे विशेष लाभ मिलता है।
सूर्य देव और षष्ठी माता को समर्पित पर्व
यह पर्व सूर्य देव और षष्ठी माता को समर्पित है, जिसमें व्रती कठोर उपवास रखते हैं और विशेष पूजा-पाठ करते हैं। प्रसाद पूरी तरह से शुद्ध और स्वादिष्ट होता है, जिसमें गन्ना, गेहूं, चावल, ताजे फल और नई फसल से बने गेहूं शामिल होंगे। ठेकुआ, खीर, गन्ने का रस और माता पूजन के लिए बांस का सूप, नारियल, अदरक, हल्दी, मूली, नींबू और अन्य फल चाहिए। नई फसल से प्राप्त सामग्री से पूजन इस बार और भी शुद्ध होगा।