Jamshedpur-Co-operative-College: कल कॉलेज में वर्ल्ड थिएटर डे मनाया गया (10 April)

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Jamshedpur-Co-operative-College: कल कॉलेज में वर्ल्ड थिएटर डे मनाया गया (10 April)

Jamshedpur-Co-operative-College: नाटक मनोरंजन का साधन ही नहीं, मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी मददगार: प्रो. रविकांत मिश्र

Co-operative-College में विश्व रंगमंच दिवस मनाया गया, साथ ही नाटक के चिकित्सकीय प्रभावों पर चर्चा भी की गई।

Jamshedpur-Co-operative-College: कल कॉलेज में वर्ल्ड थिएटर डे मनाया गया
Jamshedpur-Co-operative-College: कल कॉलेज में वर्ल्ड थिएटर डे मनाया गया

जमशेदपुर को ऑपरेटिव कॉलेज जमशेदपुर के थिएट्रिकल सोसायटी, अस्तित्व: द मिरर के बैनर मैं ” विश्व रंग मंच दिवस का आयोजन किया गया।। इस अवसर पर “नाटक का चिकित्सा उद्देश्य” पर विचार गोष्ठी हुई।  रविकांत मिश्र (Creative Head of Astitva:The Mirror Theatrical Society, JCC) ने कार्यक्रम के मुख्य आयोजक और विभागाध्यक्ष डॉ. संजय यादव ने नाटक और उसके चिकित्सकीय प्रभावों पर महत्वपूर्ण वक्तव्य दिए।

रवि कांत मिश्र ने कहा कि नाटक मनोरंजन का एक साधन नहीं है, बल्कि मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर करता है। उन्होंने कार्यक्रम में शामिल सभी लोगों का आभार व्यक्त किया और इस साहसिक कार्य की सराहना की।

Jamshedpur-Co-operative-College: कल कॉलेज में वर्ल्ड थिएटर डे मनाया गया
Jamshedpur-Co-operative-College: कल कॉलेज में वर्ल्ड थिएटर डे मनाया गया

कार्यक्रम का संचालन अंग्रेजी विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. रचिका तिवारी ने किया था, जिन्हें धन्यवाद दिया गया था। डॉ. एसएन ठाकुर, डॉ. किरण दुबे, बृजेश कुमार और डॉ. शालिनी सहित कॉलेज के सभी वरिष्ठ फैकल्टी मेंबर इस अवसर पर उपस्थित थे। पविता और मल्कम बैस्टिन, दो पूर्व छात्राएं, ने कार्यक्रम के दौरान अपने विचार साझा किए और शिक्षक और आयोजकों का आभार जताया। उन्हें लगता था कि कार्यक्रम महत्वपूर्ण था क्योंकि यह नाटक की कला को समझने का एक अवसर था और यह मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक प्रभावी उपचार बन गया था।

प्रो. प्रभारी आज डॉ. संजय यादव अस्तित्व के रचनात्मक प्रमुखः द मिरर रविकांत मिश्रा रंगमंच विशेषज्ञ और नाटककार समारोह में उपस्थित वरिष्ठ शिक्षकों में डॉ. एस. एन. ठाकुर, पोल.विज्ञानं विभाग, वनस्पति विज्ञान विभाग से बृजेश कुमार, डॉ. शालिन शर्मा, डॉ. किरण दुबे इस अवसर पर हिंदी विभाग की प्रमुख डॉ. पुष्प सिंह, डॉ. सबिता पॉल और शोभा देवी उपस्थित थीं। रंगमंच के पूर्व छात्र जिन्होंने रंगमंच के अपने अनुभव साझा किए, वे हैं पवित्रा और मैल्कम बास्टिंग। अंग्रेजी की सहायक प्रोफेसर डॉ. रुचिका तिवारी द्वारा मंच प्रबंधन और धन्यवाद ज्ञापन किया गया।

 

थिएटर क्या है

रंगमंच, वास्तुकला में, एक इमारत या स्थान जिसमें कलाकृतियों को दर्शकों को दिखाया जा सकता है। यह ग्रीक शब्द थिएट्रॉन से आता है, जिसका अर्थ है “देखने की जगह”। अक्सर, प्रदर्शन एक मंच पर होता है। प्राचीन काल से ही, थिएटरों का डिजाइन कलाकारों को देखने और सुनने वाले दर्शकों की मांगों और प्रस्तुत गतिविधियों की बदलती प्रकृति द्वारा निर्धारित किया गया है।

वर्ल्ड थिएटर डे (World Theatre Day) की शुरुआत 1961 में UNESCO की अंतरराष्ट्रीय संस्था इंटरनेशनल थिएटर इंस्टीट्यूट (International Theatre Institute) द्वारा की गई थी।

27 मार्च को विश्व भर में वर्ल्ड थिएटर डे मनाया जाता है। हर साल, थिएटर से जुड़े लोग इस दिन को भव्य रूप से मनाने की कोशिश करते हैं। आज थिएटर का महत्व समाज तक पहुँचाने के लिए नाटकों को अलग-अलग स्थानों पर चैरिटी के लिए प्ले किया जाता है, थिएटर वर्कशॉप्स का आयोजन किया जाता है और कई अन्य कार्यक्रम।

रंगमंच शुरू से ही एक बड़ा बदलाव लाने और लोगों को शिक्षित करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम रहा है। नाटकों में कहा जाता है कि विचारों का आदान-प्रदान निरंतर होने पर किसी दिशा की ओर बढ़ सकता है। इससे हम अपने समाज को उसी दिशा में ले जा सकते हैं, जहां हम चाहते हैं। थिएटर इसमें बहुत महत्वपूर्ण योगदान देता है। नाटकों के माध्यम से कलाकारों और दर्शकों के बीच एक गहरा संबंध होता है।

थिएटर का इतिहास

थिएटर की परंपरा कोई नई नहीं है। इसका तो अपना एक विशाल और प्रख्यात इतिहास रहा है। जब भी थिएटर के इतिहास की बात होती है, तो उसमें प्राचीन ग्रीस थिएटर (Theatre of Ancient Greece) की चर्चा जरूर होती है। प्राचीन ग्रीस थिएटर की शुरुआत छठी शताब्दी ईसा पूर्व में हुई थी। इन नाटकों की प्रवृत्ति काफी धार्मिक थी, इसलिए चाहे गरीब हो या अमीर, हर कोई इन्हें देखने के लिए जाता था। प्राचीन ग्रीस थिएटर में तकरीबन 17 हजार लोगों के बैठने की क्षमता थी।

यहां लोग ऐसे जाते थे, मानो वे चर्च में जा रहे हों। इन थिएटर में दो ही मूल भाव होते थे। एक ट्रेजेडी और दूसरा कॉमेडी। लोग बहुत ही चाव से इन्हें देखते थे। आज भले ही एथेंस में मौजूद यह थिएटर खंडहर बन गया है, लेकिन वहां जाने वाले लोगों का मानना है कि उन्हें वहां दशकों से चले आ रहे नाटकों का एक अलग ही अहसास होता है। सदियों से चले आ रहे थिएटर को अब एक कला के रूप में पहचान मिल चुकी है।

UNESCO की अंतरराष्ट्रीय संस्था इंटरनेशनल थिएटर इंस्टीट्यूट ने 1961 में विश्व थिएटर दिवस का उद्घाटन किया था। रंगमंच की अभिव्यक्ति का इसके बाद से दुनिया भर में प्रचार-प्रसार होने लगा। वर्ल्ड थिएटर डे का खास उद्देश्य था कि दुनिया भर में शांति की कोशिश करना संभव है, एक दूसरे की संस्कृति का सम्मान करना और उनका अच्छे से हस्तांतरण करना।

आजादी के बाद भारत में पहला नाटक शिक्षण संस्थान अंग्रेजों से आजादी मिलने पर नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा खुला। यहां छात्रों को विश्व भर के थिएटर की कला, भारत के विभिन्न राज्यों की संस्कृति और पारंपरिक नाट्य विशेषताओं की पढ़ाई दी जाती है। छात्रों के पाठ्यक्रम में संगीत से लेकर हर कला शामिल है। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा ने फिल्म इंडस्ट्री को एक से एक अच्छे कलाकार दिए हैं, जैसे हिमानी शिवपुरी, नीना गुप्ता, अनुपम खेर, नसीरुद्दीन शाह, आशुतोष राणा, अतुल कुलकर्णी, राज बब्बर, पीयूष मिश्रा और पंकज त्रिपाठी।

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