Navratri Maa Kushmanda Puja: नवरात्रि के चौथे दिन माँ कूष्मांडा की पूजा, जानिए पूजा विधि और कथा

Maa Kushmanda
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Navratri Maa Kushmanda Puja: नवरात्रि के चौथे दिन माँ कूष्मांडा की पूजा, जानिए पूजा विधि और कथा

नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा माता की पूजा करनी चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता कुष्मांडा की पूजा और उपासना करने से भक्तों को सभी रोग, कष्ट और दुःख दूर होते हैं। चैत्र नवरात्रि इस बार नौ दिनों की नहीं बल्कि आठ दिनों की है। हर दिन नवरात्रि पर देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के चौथे दिन माँ कुष्मांडा की पूजा करनी चाहिए।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माँ कुष्मांडा की पूजा और उपासना करने से भक्तों के सभी तरह के रोग, कष्ट और शोक समाप्त हो जाते हैं। नवरात्रि में माँ के इस रूप की पूजा करने से भक्तों की आयु, यश, कीर्ति, बल और आरोग्यता में वृद्धि होती है। भगवती पुराण में देवी कुष्मांडा को अष्टभुजा से युक्त बताया गया है।

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कथा

देवी माँ को नवरात्र के चौथे दिन कुष्मांडा के रूप में पूजा जाता है। इस देवी को कुष्मांडा कहा जाता है क्योंकि वह अपनी मंद, हल्की हंसी से अंड यानी ब्रह्मांड को बनाती है। जब सृष्टि नहीं हुई थी, तो इसी देवी ने अपने ईषत् हास्य से ब्रह्मांड बनाया था। इसलिए इसे सृष्टि की आदिशक्ति या आदिस्वरूपा कहा जाता है।

इस देवी को अष्टभुजा कहते हैं क्योंकि उसकी आठ भुजाएं हैं। इनके सात हाथों में एक कमंडल, एक धनुष, एक बाण, एक कमल-पुष्प, एक अमृत कलश, एक चक्र और एक गदा हैं। सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला आठवें हाथ में है। सिंह इस देवी का वाहन है। संस्कृति में कुम्हड़े को कुष्मांड कहा जाता है, इसलिए इस देवी को कुष्मांडा कहा जाता है। इस देवी का स्थान सूर्यमंडल में है। इन्हीं में सूर्यलोक में रहने की क्षमता है। यही कारण है कि इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य की तरह चकीली है। इनके ही तेज से दसों दिशाएं प्रकाशित होती हैं। इन्हीं का तेज ब्रह्मांड की हर वस्तु और प्राणी में है।

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माँ कुष्मांडा का स्वरूप

माँ कुष्मांडा का तेजस्वी और दिव्य स्वरूप है। उनकी आठ भुजाएं हैं: कमंडल, धनुष, बाण, कमल का फूल, अमृत कलश, चक्र, गदा और जपमाला। माँ सिंह पर सवार हैं। शक्ति, समृद्धि और शांति का प्रतीक उनका यह स्वरूप है।

माँ कुष्मांडा की पूजा विधि

अपने पूजन स्थल को शुद्ध करें और स्वच्छ कपड़े पहनें। पूजा स्थल पर माँ कुष्मांडा की प्रतिमा या चित्र को स्थापित करें। माँ के बारे में सोचें और उन्हें आमंत्रित करें। यह सोचते समय माँ की सुंदर छवि की कल्पना करें। इसके बाद पंचामृत और जल से स्नान करें। फिर माँ को सुंदर कपड़े, फूल, माला और आभूषण दें। विशेष रूप से, माँ को कुम्हड़ा (कद्दू) खाना शुभ माना जाता है। माँ को मिष्ठान्न, फल, नारियल और विशिष्ट भोजन दें। सफेद भोजन माँ कुष्मांडा के लिए शुभ है। अंत में माँ को दीपक, धूप और गंध देकर आरती उतारें।

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