अमर क्रांतिकारियों की मिटती कहानी23rd March

23rd March,2025
अमर क्रांतिकारियों की मिटती कहानी
साल के तीसरे महीने मार्च, का ये 23वां दिन, कई घटनाओं के साथ ही आजादी के उन मतवालों के नाम पर इतिहास में दर्ज है, जिन्होंने हंसते हुए देश पर अपनी जान को न्योछावर कर दिया. जी हां, 23 मार्च 1931 को ही भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर को फांसी दी गई थी. कोर्ट ने तीनों को फांसी दिए जाने की तारीख 24 मार्च तय की थी, लेकिन ब्रिटिश सरकार को माहौल बिगड़ने का डर था, इसलिए नियमों को दरकिनार कर एक रात पहले ही तीनों क्रांतिकारियों को चुपचाप लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी पर चढ़ा दिया गया। इन तीनों पर अंग्रेज अफसर सांडर्स की हत्या का आरोप था।
साल 1931 को आज ही के दिन भारत में ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेंकने में अपना अहम किरदार निभाने वाले तीन महान क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गयी थी। उनकी याद में हर साल 23 मार्च को बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है, ताकि उनके बलिदान को देश हमेशा याद रखे।

ये वे भारतीय थे, जिनसे ब्रिटिश सरकार डरने लगी थी, और एक हमारे आज के युवा हैं, जिनसे भारत सरकार भी डरी रहती है. लेकिन दोनों के डर में फर्क है. अंग्रेज़ों का डर भारत से निकाले जाने का था, लेकिन मौजूदा सरकार का डर, आज के युवाओं को खूनी खेल खेलने से रोकने का है. जब देखो, धर्म और जात पात को लेकर लोग लड़ रहे हैं, कत्लेआम कर रहे हैं.
देश को आज़ाद करने के लिए भारतीय होना पड़ा था, न कि धर्म के आधार पर बांटे गए थे. लेकिन आज, आज़ाद भारत के उस सपने को जिन्हें हमारे वीर शहीदों ने देखा था, शायद ही हम भारतीय पूरा कर पाएंगे, क्यूंकि हमें अपनों से ही लड़ने से फुर्सत नहीं है. हम कहाँ देश की प्रगति में हिस्सेदार बनेंगे, जब हम खुद अपने ही देश के दुश्मन बने बैठे हैं.
28 सितंबर, 1907 को पंजाब के लायलपुर में बंगा गांव (जो अभी पाकिस्तान में है) में जन्मे भगत सिंह महज 12 साल के थे, जब जलियांवाला बाग कांड हुआ था। इस हत्याकांड ने उनके मन में अंग्रेजों के खिलाफ गुस्सा भर दिया था। जब भगत सिंह को फांसी पर चढ़ाया गया उस समय भगत सिंह महज 23 साल के थे। लेकिन उनके क्रांतिकारी विचार बहुत व्यापक और आला के दर्जे के थे। न केवल उनके विचारों ने लाखों भारतीय युवाओं को आजादी की लड़ाई के लिए प्रेरित किया, बल्कि आज भी उनके विचार युवाओं का मार्गदर्शन करते हैं।

काकोरी कांड के बाद क्रांतिकारियों को हुई फांसी से उनका गुस्सा और बढ़ गया। इसके बाद वो चंद्रशेखर आजाद के हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए। 1928 में साइमन कमीशन के खिलाफ हुए प्रदर्शन के दौरान अंग्रेजों ने लाठीचार्ज कर दिया। इस लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय को गंभीर चोटें आईं। ये चोटें उनकी मौत का कारण बनीं।
इसका बदला लेने के लिए क्रांतिकारियों ने पुलिस सुपरिटेंडेंट स्कॉट की हत्या की योजना तैयार की। 17 दिसंबर 1928 को स्कॉट की जगह अंग्रेज अधिकारी जेपी सांडर्स पर हमला हुआ, जिसमें उसकी मौत हो गई। 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने ब्रिटिश भारत की सेंट्रल असेंबली में बम फेंके। ये बम जानबूझकर सभागार के बीच में फेंके गए, जहां कोई नहीं था।
बम फेंकने के बाद भागने की जगह वो वहीं खड़े रहे और अपनी गिरफ्तारी दी। करीब दो साल जेल में रहने के बाद 23 मार्च 1931 को भगत सिंह को राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी पर चढ़ा दिया गया। वहीं, बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास की सजा मिली।
इंकलाब का नारा बुलंद करने वाले भगत सिंह अपने आखिरी समय में भले ही अंग्रेजी हुकूमत की बेड़ियों में जकड़े थे वे कहते थे कि बेहतर जिंदगी सिर्फ अपने तरीकों से जी जा सकती हैं। यह जिंदगी आपकी है और आपको तय करना है कि आपको जीवन में क्या करना है। भगत सिंह कहा करते थे, मैं एक ऐसा पागल हूं, जो जेल में भी आजाद है और मेरी गर्मी से ही् राख का हर एक कण गतिमान हैं।
भगत सिंह जीवन के लक्ष्य को महत्व देते थे। उनका मानना था कि हमें अपने जीवन का लक्ष्य पता होना चाहिए। अगर हमें अपने लक्ष्य का पता होगा और हम अपने लक्ष्योन्मुख से कार्य करेंगे तो हमें सफल होने से कोई ताकत नहीं रोक सकती है। परिवर्तन या बदलाव को लेकर उनके विचार सकारात्मक थे। वे मानते थे कि हमें बदलाव से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। वे रूढ़िवादी विचारों के लिए कहते थे कि हमें किसी चीज का आदि नहीं होना चाहिए।

देश के लिए त्याग और बलिदान उनके लिए सर्वोपरि रहा। वे कहते थे कि एक सच्चा बलिदानी वही है जो जरुरत पड़ने पर सब कुछ त्याग दे। भगत सिंह स्वयं अपनी निजी जिंदगी से प्रेम करते थे, उनकी भी महत्वाकांक्षाएं थी, सपने थे। लेकिन अपनी मातृभूमि पर उन्होंने अपना सबकुछ कुर्बान कर दिया। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के जीवन से हमें देशभक्ति की प्रेरणा मिलती है।
साथ में उन महान क्रांतिकारियों के जीवन से हम ये भी सीख सकते हैं कि अगर देश की आन, बान और शान के खिलाफ कोई ताकत खड़ी होती है तो हमें बल के साथ-साथ वैचारिक रूप से भी उसे कुचलने की आवश्यकता है। क्योंकि विचार कभी मरते नहीं है। बेशक इसके लिए गहन अध्ययन की भी आवश्यकता होती है।
आज के युवाओं को यह समझना होगा कि देश की प्रगति जितनी ज़्यादा होगी, हमारा सतत विकास उतना ही तेज़ होगा. भारत की हर सीमा पर हमारे भारतीय जवान 24 घंटे अपनी जान को हथेली पर रखे देश और देशवासियों की सेवा कर रहे हैं, कम से कम उनकी ही लाज रख ले ये लोग जिन्हें अपने ही देश में तोड़ फोड़, आगजनी करने में इतना मज़ा आ रहा है. धर्म की आड़ में ये नौजवान भूलते जा रहे कि कुछ वर्षों पहले देश की आज़ादी के लिए कितने ही इन जैसे नौजवानों ने हँसते हँसते अपने प्राणों की आहुति दे दी.
अब अगर इन्हे समझ नहीं आ रहा, तो भारत सरकार को समझना होगा और इन जैसे बुरे लोगों के साथ सख्त से सख्त कार्यवाही की जानी चाहिए. दंगे, तोड़ फोड़ और आग लगाने से देश का भला यही होगा, ये इन्हें अच्छी तरह से समझाना होगा. अगर हम इनकी शौर्य गाथा को याद कर खुद को सुधार नहीं सकते, तो इनकी अमर कहानियां इतिहास के पन्नों से मिट जाएँगी. आने वाली पीढ़ी को हम क्या देंगे. ये एक गंभीर समस्या है. अगर कोई ऐसा करे, तो इतनी सख्त सज़ा दी जाये की दुबारा करने से पहले 100 बार सोचे. हम सब सिर्फ भारतीय हैं, और गर्व से एक साथ एक ही सूत्र में बँधकर हम मिल कर कह सके कि “हम भारतीय हैं”.
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