विश्व कविता दिवस 21 मार्च : कविता की भूमिका सुनहरे भविष्य निर्माण में

विश्व कविता दिवस 21 मार्च : कविता की भूमिका सुनहरे भविष्य निर्माण में
जमशेदपुर : 21 मार्च 25
बीते दिन, सेंट्रल एवेन्यू, नॉदर्न टाउन, जमशेदपुर में इप्टा और जमशेदपुर के संस्कृतिकर्मियों ने ‘विश्व कविता दिवस’ पर एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया. इसमें जर्मन, स्पैनिश, अंगरेजी, फिलिस्तीनी, रूसी, चीनी, तिब्बती, संस्कृत, उर्दू, बांग्ला और हिन्दी सहित विभिन्न भाषाओं की कविताओं का पाठ किया गया।

संचालन करते हुए अर्पिता ने आइसलैंड की कवयित्री गेरदुर क्रिस्टनी के काव्य-संग्रह ‘नये वर्ष की सुबह’ की भूमिका बताई, जो बताती है कि आइसलैंड के लोगों ने आर्थिक मंदी से उपजी हताशा और निराशा को कविताओं के माध्यम से दूर किया। ईश्वर को खोजने के बजाय लोग कविता को खोजने लगे। कवि-लेखकों ने वहां पीड़ित लोगों की पीड़ा को व्यक्त किया और उस व्यवस्था के खिलाफ जनजागृति को प्रेरित किया जिसने आइसलैंड को सबसे अमानवीय दौर में डाल दिया था। लोगों में कविता ने एक सुनहरे भविष्य की उम्मीद जगाई।
बीते दिन कविता पाठ में पढ़ी गई कविताओं में मनुष्यों, प्रकृति और आम जनता की एकता का सपना था। वहीं झूठ, उन्माद, अन्याय और विध्वंस की प्रवृत्तियों से लड़ना भी था। कथाकार-पत्रकार कृपाशंकर ने हिन्दी के प्रसिद्ध कवि सर्वेश्वर
दयाल सक्सेना की एक कविता पढ़ी, जिसमें लिखा है, “दुख तुम्हें क्या तोड़ेगा/तुम दुख को ही तोड़ दो/बस अपने सपनों को/औरों के सपनों से जोड़ दो।” शशि कुमार ने फ़ैज़ का लेख ‘फिलीस्तीन के लिए’ पढ़ा।

फैज़ की नज़्म ‘आज बाज़ार में पा ब जौला चलो’ को एसवी रमण ने गाकर सुनाया। वर्षा ने दुन्या मिखाइल की ‘दुनिया का आकार’ और राशिद हुसैन की ‘लानत है’, नम्रता ने उदय प्रकाश की ‘मरना’, सुरभी ने भी उन्हीं की ‘दुआ’, और सुजल ने ब्रेख्त और राजेश जोशी की कविताओं को पढ़ा। दिव्या ने हु थीन की कविता ‘हम परस्पर सम्मान करते हैं’ पढ़ी। सुजीत कुमार ने ब्रेख्त की कविता ‘सच हमें जोड़ता है’ पढ़ी। तहण कुमार ने नवीन सागर की, विक्रम ने साहिर की, तान्या पारकर ने अनामिका की, सुधीर सुमन ने ब्रेख्त, नाजिम हिकमत और महमूद दरवेश की।किरण माझी ने भगवत रावत, काशीनाथ प्रजापति ने निर्मला पुतुल और शैलेंद्र अस्थाना ने चेन मिताक की कविताओं को पढ़ा।
जसिंता करकेट्टा की कविता ‘पूजा स्थल की ओर ताकता देश’ को विनय कुमार ने पढ़ी, और संजय सोलोमन ने उन्हीं की कविता ‘सेना का रूख किधर है’ को पढ़ा। हरिवंश राय बच्चन की रचना वैद्यनाथ हांसदा ने सुनाई। “सूरज छिपा है बादल के आगोश में” गाना गौतम ने सुनाया। रक्तचिह्नों, मल्लिका सेन गुप्ता की बांग्ला कविता, सौरभ साहू ने सुनाई। मंथन ने इन कविताओं में झूठ नहीं बताया। ये सत्य को बचाने के संघर्ष का एक हिस्सा हैं।
स्त्री मुक्ति संगठन की गुड्डी, सुजीत कुमार महतो, विक्रम, कृष्णा सोरेन और प्रिंस भी इस मौके पर उपस्थित थे।
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